पप्पूड़ो अर् पप्पूड़े रा दादाजी

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भाई लोगा ने राम-राम।

जमानो कितो बदलग्यो!!! आ तो थे देख ही रईया हो, अब मैं थाने एक पंहूचियोड़ा साहित्यकार (पप्पूड़े रा दादाजी) और ३ साल रै पप्पूड़े रै बीच री हताई रो जायको परोस रीयो हूँ, मजो लेइज्यो -


पप्पूड़ो :- दादाजी मनै लिखबा वास्तर पैन अर् कापी दीराओ, मैं कवितावाँ लिखूँला

दादाजी :- थाप री खावैलो, बोलणो तो पूरो आवे कोनी हर कवितावाँ लिखसी

पप्पूड़ो :- क्यूँ??? कोनी लिख सकूँ काईं

दादाजी :- लिखबा वास्तर भाषा रो ज्ञान होणो चाईजै, थनै कक्को तो आवे कोनी फैर क्यां लिखसी

पप्पूड़ो :- क्यूँ जद् मिनखपणां रा कोई लखण हूईयां बिना भी मिनख हू सकै, पाणी रो लोटो ही अठी-उठी नी करण आला मन्दिर-मस्जिद फूंक सकै, समुदर रो पाणी मीठो हू सकै अर् भाटो दूध पी सके तो मै क्यूँ कोनी लिख सकूँ???

दादाजी :- चुपचाप पड़यो रै, उग्यो कोनी जी पैला थनै कीती बाता आउण लागी है, माथा माथे भार पड़ ई जणा छकड़ी भूल जाय

पप्पूड़ो :- लागै थांके कनै मारी बातां रो जबाब कोनी जणा ई थैं बात फैर रया ॰॰॰ (दादाजी बीच मांय टोक अर् बोल्या)

दादाजी :- लै १० रूपिया और लै आ काईं लाणों है ज्यूं ॰॰॰

पप्पूड़ो ग्यो परो अर् दादाजी "है भगवाण!!! आजकाल रा टाबर तो ॰॰॰॰" (कैर हुक्को गुड‌गुड़ावण लागग्या)

 

जमानो कितो बदलग्यो!!!

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भाई लोगा ने राम-राम!!!


चौपाल री हथाई अर‍् ई पोट्ला री हथाई में कांई फरक है आ बताण री जरूत तो कोनी पण फेर भी जमानो कितो बदलग्यो!!!


पैलां सुबह सुआणी उठता ही छापो बांचता अर् बो भी चौपाल पर सग्ला ने सुणाता पण अब भाट्टा मांय लुक अर् पोट्लो बांचा ॰॰॰


पैलां कोई हरख री बात हुती तो गलै मिलता, सग्ला ने जीमाता पण अब पोट्ला पर होले सेक "बधाई" लिख देंवा अर् बठै ही "धन्यवाद" ले लेंवा, मुंडो मीठो करण री मण म आवे तो होठा माथे जीभ फेर लैंवा ॰॰॰


दुख तो हुवे पण काईं कर सका, जमाणा रे लारे भागणो ही पड़सी ॰॰॰


जमानो कितो बदलग्यो!!!